जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रणतपाल भगवंता ।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता ।।
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई ।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ।।1।।
जय जय अबिनासी सब घट वासी व्यापक परमानंदा ।
अविगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा ।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ।।2।।
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा ।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ।।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा ।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुरजूथा ।।3।।
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना ।
जेहि दीन पियारे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ।।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा .
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ।।4।।
दोहा - जानि समय सुर भूमि सुनि, बचन समेत सनेहु ।
गगन गिरा गंभीर भई, हरनि शोक संदेह ।।