Thursday, December 6, 2012

हारिये मत हिम्मत

हारिये मत हिम्मत

तुम सुख, दुःख की अधीनता छोड़ उनके ऊपर अपना स्वामित्व स्थापन करो और उसमें जो कुछ उत्तम मिले उसे लेकर अपने जीवन को नित्य नया रसयुक्त बनाओ। जीवन को उन्नत करना ही मनुष्य का कर्तव्य है इसलिए तुम भी उचित समझो सो मार्ग ग्रहण कर इस कर्तव्य को सिद्ध करो।

प्रतिकूलताओं से दरोगे नहीं और अनुकूलता ही को सर्वस्व मान कर न बैठे रहोगे तो सब कुछ कर सकोगे। जो मिले उसी से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उच्च बनाओ। यह जीवन ज्यों ज्यों उच्च बनेगा त्यों त्यों आज जो तुम्हें प्रतिकूल प्रतीत होता है वह सब अनुकूल दिखने लगेगा और अनुकूलता आ जाने पर दुःख मात्र की निवृत्ति हो जाएगी। 

Friday, September 28, 2012

Krishna Bhajan 3 - मैं तुमको श्याम बुलाऊं

मैं तुमको श्याम बुलाऊं , सादर  घर में पधराउँ 

नैनों से स्वागत गाऊं , सर्बस दे तुम्हे रिझाऊं
अंखियन जल पैर धुलाऊं , हिय झूले तुम्हे झुलाऊं

प्रेमामृत रस नहलाऊँ , भोजन रस मधुर कराऊं
हिय कोमल सेज सुलाऊं , सुरभित अति पवन ढुलाऊं

कोमल कर चरण दबाऊं , छवि निरख निरख सुख पाऊं
छिन छिन मन मोद बढाऊं , नाचूं गाऊं हर्शाऊं

नख शिख पर बलि बलि जाऊं , मैं न्योछावर हो जाऊं 

Krishna Bhajan 2 - वल्लभ श्रीनाथ भजो राधे गोविंदा

वल्लभ श्रीनाथ भजो राधे गोविंदा
द्वारिका ना  नाथ भजो राधे गोविंदा

पुरी जगन्नाथ भजो राधे गोविंदा
बद्री विशाल भजो राधे गोविंदा

रामेश्वर नाथ भजो राधे गोविंदा
तिरुपति नाथ भजो राधे गोविंदा

बालाजी नाथ भजो राधे गोविंदा
पंढरी नाथ भजो राधे गोविंदा

रुक्ष्मणि ना नाथ भजो राधे गोविंदा
वृन्दावन नाथ भजो राधे गोविंदा

गोवर्धन नाथ भजो राधे गोविंदा
लक्ष्मी ना  नाथ भजो राधे गोविंदा 

Thursday, September 27, 2012

Ram Bhajan 2 - पायो जी मैंने

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु किरपा कर अपनायो

1. जनम जनम की पूँजी पायी , जग में सभी खोवायो

2. खर्च न फूटे चोर न लूटे , गिन गिन बढ़त सवायो

3. सत की नाव खेवटिया सतगुरु , भवसागर तर आयो

4. मीरा के प्रभु गिरिधर नागर , हरख हरख जस गायो

Shiv Bhajan 3 - गूंजे सदा जयकार

गूंजे सदा जयकार हो SSS भोले तेरे भवन में

1. बेलपत्र और गंगाजल ले, भक्ति भाव से पूजा कर ले
       तारेंगे भव से पार हो SSS चलो शिव की शरण में

2. शिव का ध्यान करे मन निर्मल ,  शिव भक्ति है पुण्यों का फल
         करते हैं भोले निवास हो SSS अपने भक्तों के मन में

3.  संकट से शिव सदा उबारें , दर्शन देकर भाग्य संवारें
          भोले की महिमा अपार हो SSS हम गायें सब मिलके




Thursday, May 24, 2012

Gurudev Bhajan 3 - आओ गुरुवर मेरे

आओ  गुरुवर मेरे 

आओ  गुरुवर मेरे , डालूँ माला गले , तुमको ध्याऊं 
ऊंचे आसन  पे तुमको बिठाऊं 

1. बहुत  दिन से थी इच्छा हमारी ,
       गुरु आये हैं शरण तुम्हारी 
     आज  सन्मुख  खड़ा , द्वार  तेरे पड़ा , मन  लगाऊं 
        ऊंचे  आसन  पे  तुमको  बिठाऊं 

2. है  मंझधार  नैया  हमारी ,
       होवे  पार  जो  किरपा  तुम्हारी  
     पार नैया  करो , कष्ट  मेरे  हरो ,  सिर  झुकाऊं  
        ऊंचे  आसन  पे  तुमको  बिठाऊं  

3. क्या  दक्षिणा  दूं  मैं  तुम्हारी  ,
       कोई  चीज़  नज़र  ना  हमारी  
     प्रेम  प्रसाद  है , भाव  ही  सार  है , फल  खिलाऊं 
        ऊंचे  आसन  पे  तुमको  बिठाऊं   

Wednesday, May 16, 2012

Vishnu Puraan - 2

श्री लक्ष्मी स्तुति 

नमस्ये सर्वलोकानां जननी मब्ज संभवाम  
श्रियमुनीन्द्रपद्माक्षी विष्णु वक्षः स्थल  स्थिताम 

अर्थ  -  संपूर्ण  लोकों की जननी, विकसित  कमल  के सद्रश  नेत्रोंवाली, भगवान  विष्णु के वक्षः स्थल  में विराजमान  कमलोद्धवा श्री लक्ष्मी देवी को मैं नमस्कार करता हूँ। 

पद्मालयां  पद्मकरां  पद्मपत्रनिभेक्षणाम  
वन्दे पद्म मुखीं  देवीं पद्म नाभ  प्रिया महम  

अर्थ  -  कमल  ही जिनका निवास स्थान  है , कमल  ही जिनके कर - कमलों में सुशोभित  है , तथा कमल - दल  के समान  ही जिनके नेत्र हैं उन  कमल  मुखी कमल नाभ  प्रिया श्री कमला देवी की मैं वंदना करता हूँ 

त्वं  सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोक  पावनी 
संध्या रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती 

अर्थ - हे देवी ! तुम  सिद्धि हो, स्वधा हो , स्वाहा हो , सुधा हो और  त्रिलोकी को पवित्र करने वाली हो तथा तुम ही संध्या, रात्रि , प्रभा, विभूति, मेधा, श्रद्धा और सरस्वती हो। 

Monday, May 14, 2012

Vishnu Puran -1

क्रोध  तो मूर्खों को ही हुआ  करता है , विचारवानों को भला कैसे हो सकता है ? क्रोध  तो मनुष्य के अत्यंत  कष्ट से संचित  यश  और  तप  का भी प्रबल  नाशक  है . इस  लोक  और परलोक  दोनों को बिगाड़ने वाले इस  क्रोध  का महर्षि गण  सर्वदा त्याग  करते हैं.  साधुओं का धन  तो सदा क्षमा ही है।