Thursday, May 24, 2012

Gurudev Bhajan 3 - आओ गुरुवर मेरे

आओ  गुरुवर मेरे 

आओ  गुरुवर मेरे , डालूँ माला गले , तुमको ध्याऊं 
ऊंचे आसन  पे तुमको बिठाऊं 

1. बहुत  दिन से थी इच्छा हमारी ,
       गुरु आये हैं शरण तुम्हारी 
     आज  सन्मुख  खड़ा , द्वार  तेरे पड़ा , मन  लगाऊं 
        ऊंचे  आसन  पे  तुमको  बिठाऊं 

2. है  मंझधार  नैया  हमारी ,
       होवे  पार  जो  किरपा  तुम्हारी  
     पार नैया  करो , कष्ट  मेरे  हरो ,  सिर  झुकाऊं  
        ऊंचे  आसन  पे  तुमको  बिठाऊं  

3. क्या  दक्षिणा  दूं  मैं  तुम्हारी  ,
       कोई  चीज़  नज़र  ना  हमारी  
     प्रेम  प्रसाद  है , भाव  ही  सार  है , फल  खिलाऊं 
        ऊंचे  आसन  पे  तुमको  बिठाऊं   

Wednesday, May 16, 2012

Vishnu Puraan - 2

श्री लक्ष्मी स्तुति 

नमस्ये सर्वलोकानां जननी मब्ज संभवाम  
श्रियमुनीन्द्रपद्माक्षी विष्णु वक्षः स्थल  स्थिताम 

अर्थ  -  संपूर्ण  लोकों की जननी, विकसित  कमल  के सद्रश  नेत्रोंवाली, भगवान  विष्णु के वक्षः स्थल  में विराजमान  कमलोद्धवा श्री लक्ष्मी देवी को मैं नमस्कार करता हूँ। 

पद्मालयां  पद्मकरां  पद्मपत्रनिभेक्षणाम  
वन्दे पद्म मुखीं  देवीं पद्म नाभ  प्रिया महम  

अर्थ  -  कमल  ही जिनका निवास स्थान  है , कमल  ही जिनके कर - कमलों में सुशोभित  है , तथा कमल - दल  के समान  ही जिनके नेत्र हैं उन  कमल  मुखी कमल नाभ  प्रिया श्री कमला देवी की मैं वंदना करता हूँ 

त्वं  सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोक  पावनी 
संध्या रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती 

अर्थ - हे देवी ! तुम  सिद्धि हो, स्वधा हो , स्वाहा हो , सुधा हो और  त्रिलोकी को पवित्र करने वाली हो तथा तुम ही संध्या, रात्रि , प्रभा, विभूति, मेधा, श्रद्धा और सरस्वती हो। 

Monday, May 14, 2012

Vishnu Puran -1

क्रोध  तो मूर्खों को ही हुआ  करता है , विचारवानों को भला कैसे हो सकता है ? क्रोध  तो मनुष्य के अत्यंत  कष्ट से संचित  यश  और  तप  का भी प्रबल  नाशक  है . इस  लोक  और परलोक  दोनों को बिगाड़ने वाले इस  क्रोध  का महर्षि गण  सर्वदा त्याग  करते हैं.  साधुओं का धन  तो सदा क्षमा ही है।