Sunday, November 3, 2024

नख पर धरि के श्री गिरिराज

नख पै धरि के श्री गिरिराज, नाम गिरिधारी पायौ है
गिरिधारी पायो है, नाम बनवारी पायो है 

1) सुरपति पूजन बन्द करायौ, श्री गोवरधन कू पुजवाओ
नन्द बाबा और जसुदा मात, संग में बलदाऊ जी भ्रात
सकल परिवार-कुटुम लै साथ, करी पूजा विधि सौं निज हाथ

दोहा- एक रूप से पूजन है, एक ते रहे पुजाय
सहस भुजा फैलाय के माँग-माँग के खाँय

सवा लाख मन सामग्री को भोग लगायौ है.

2) ब्रजवासी ब्रज गोपी आई, वह पकवान डला भर लाईं

चली कोई उल्टी पटिया पार, चली कोई इक द्रग अंजन सार
कान में नथनी झलकेदार, नाक में करनफूल लिये डार

दोहा- उलटे-सीधे अंग में, गहने लीने डार
उलटे पहरे वस्त्र सब, उलटौ कर शृंगार
प्रेम मगन वश भईं बदन कौ होश गमायौ है

3) पूजा करि परिक्रमा दीनी, करि दण्डौती स्तुती कीनी

सबन मिलि बोलौ जब जैकार, बढ़ौ सुरपति कौ क्रोध अपार
मेघमालों से कहै ललकार, ब्रज कौ करि देउ पनियाढार

दोहा- उमड़ घुमड़ि कर घेर ब्रज, उठी घटा घनघोर
चम-चम चमकै बीजुरी, चौंके ब्रज के मोर

मूसल धार अपार मेह सुरपति बरसायो है.

4) ब्रजवासी मन में घबराए, कृष्ण चन्द्र के जौरें आए

कोप इन्दर ने कीयो आज, सहाई को अब हो महाराज
छोड़ि ब्रज कहाँ कू जामें भाज, आपके हाथ हमारी लाज

दोहा- लाज आपके हाथ है, ब्रज को लेउ बचाय
जो उपाय कछु ना करौ, पल में ब्रज बहि जाय

श्री गिर्राज मुकुट बारे ने ध्यान लगायौ है

5) ब्रजवासिन मन धीर धरायौ, सबरौ ब्रज इकठौर बुलायौ

लियो गोवरधन नख पै धार, दाऊ हल मूसर लियौ संभार
संग में गोपी, गऊ और ग्वारि, कियौ गिरि तले ब्रजविस्तार 

दोहा- सात रात और सात दिन, बरसै मेघ अघाय
जैसे ताते तबे पै, बूँद छन्न ह्वै जाय

गोप करें आनन्द नाँय छींटा तक आयौ है

6) मधुर-मधुर बाँसुरी बजाई, सब ब्रजमें आनन्द रह्यौ छाई

इन्द्र ने नारद लियौ बुलाय, खबर तुम ब्रज की लाऔ जाय
चले मुनि मृत्युलोक को धाय, ब्रज की लीला देखी आय

दोहा- ब्रज की लीला देखके, उल्टौ कियौ पयान
इन्द्रपुरी में जायकै, मुनि ने कियौ बखान

तीन लोक करतन के करता तै बैर बढ़ायौ है

7) इन्द्र ने इन्द्रासन छोड़ा, सुरभी श्याम बरनु को घोड़ा

चलौ अहरापति हाथी साथ, इन्द्र मन थरर-थरर थर्रात
पहुँचौ जहाँ त्रिलोकी नाथ, इन्द्र ने आय नवायौ माथ

दोहा- चरनन में वो गिर परौ, क्षमा करौ अपराध
हे जगकर्ता आपकी, लीला अगम-अगाध 

घासीराम गोरधनवासी ने हरिजस गयौ है

Tuesday, April 4, 2023

Ram Stuti 3 - जय जय सुरनायक

श्री राम स्तुति (बालकाण्ड, श्री रामचरितमानस )

जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रणतपाल भगवंता ।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता ।।
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई ।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ।।1।।

जय जय अबिनासी सब घट वासी व्यापक परमानंदा ।
अविगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा ।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ।।2।।

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा ।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ।।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा ।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुरजूथा ।।3।।

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना ।
जेहि दीन पियारे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ।।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा .
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ।।4।।

दोहा - जानि समय सुर भूमि सुनि, बचन समेत सनेहु ।
          गगन गिरा गंभीर भई, हरनि शोक संदेह ।।



Sunday, June 20, 2021

श्री साईं सच्चरित्र - गुरु की आवश्यकता

बाबा से भेंट करने के दूसरे दिन ‘हेमाडपंत’ और काकासाहेब ने मस्जिद में जाकर घर लौटने की अनुमति माँगी । बाबा ने स्वीकृति दे दी । 
किसी ने प्रश्न किया - “बाबा, कहाँ जाएँ ?”
उत्तर मिला - “ऊपर जाओ ।”
प्रश्न - “मार्ग कैसा है ?”
बाबा - अनेक पंथ हैं । यहाँ से भी एक मार्ग है । परन्तु यह मार्ग दुर्गम है तथा सिंह और भेड़िये भी मिलते हैं । 
काकासाहेब - यदि पथ प्रदर्शक भी साथ हो तो ?
बाबा - तब कोई कष्ट न होगा । पथ प्रदर्शक तुम्हारी सिंह, भेड़िये और खन्दकों से रक्षा कर तुम्हें सीधे निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचा देगा । परन्तु उसके अभाव में जंगल में मार्ग भूलने या गड्ढे में गिर जाने की संभावना है । 

बाबा ने जो कहा, वह  “गुरु की आवश्यकता क्यों है” इस प्रश्न का भी उत्तर है । राम और कृष्ण महान् अवतारी होते हुए भी आत्मानुभूति के लिए राम को अपने गुरु वसिष्ठ और कृष्ण को अपने गुरु संदीपनि की शरण में जाना पड़ा था । इस मार्ग में उन्नति प्राप्त करने के लिए केवल श्रद्धा और धैर्य - ये ही दो गुण सहायक हैं । 

।। ॐ साईं राम ।।

Friday, May 7, 2021

Shiv Rudrashtak

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाश वासं भजेऽहम् ।।१।।

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ।।२।।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा ।।३।।

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।।४।।

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।५।।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी 
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।६।।

न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ।।७।।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां 
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दु:खौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामिश शम्भो ।।८।। 

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भु: प्रसीदति ।।

ॐ नम: शिवाय 🙏🏻


Friday, November 6, 2015

Krishna Bhajan 4 - अच्युतम केशवम

अच्युतम केशवम कृष्ण दामोदरम 
राम नारायणम जानकी वल्लभम

१) कौन कहते हैं भगवान आते नहीं
    तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं

अच्युतम केशवम....

२) कौन कहते हैं भगवान खाते नहीं 
    बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं 

अच्युतम केशवम....

३) कौन कहते हैं भगवान सोते नहीं 
    माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं 

अच्युतम केशवम....

४) कौन कहते हैं भगवान नाचते नहीं 
    गोपियों की तरह तुम नचाते नहीं 

अच्युतम केशवम....

Thursday, December 6, 2012

हारिये मत हिम्मत

हारिये मत हिम्मत

तुम सुख, दुःख की अधीनता छोड़ उनके ऊपर अपना स्वामित्व स्थापन करो और उसमें जो कुछ उत्तम मिले उसे लेकर अपने जीवन को नित्य नया रसयुक्त बनाओ। जीवन को उन्नत करना ही मनुष्य का कर्तव्य है इसलिए तुम भी उचित समझो सो मार्ग ग्रहण कर इस कर्तव्य को सिद्ध करो।

प्रतिकूलताओं से दरोगे नहीं और अनुकूलता ही को सर्वस्व मान कर न बैठे रहोगे तो सब कुछ कर सकोगे। जो मिले उसी से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उच्च बनाओ। यह जीवन ज्यों ज्यों उच्च बनेगा त्यों त्यों आज जो तुम्हें प्रतिकूल प्रतीत होता है वह सब अनुकूल दिखने लगेगा और अनुकूलता आ जाने पर दुःख मात्र की निवृत्ति हो जाएगी। 

Friday, September 28, 2012

Krishna Bhajan 3 - मैं तुमको श्याम बुलाऊं

मैं तुमको श्याम बुलाऊं , सादर  घर में पधराउँ 

नैनों से स्वागत गाऊं , सर्बस दे तुम्हे रिझाऊं
अंखियन जल पैर धुलाऊं , हिय झूले तुम्हे झुलाऊं

प्रेमामृत रस नहलाऊँ , भोजन रस मधुर कराऊं
हिय कोमल सेज सुलाऊं , सुरभित अति पवन ढुलाऊं

कोमल कर चरण दबाऊं , छवि निरख निरख सुख पाऊं
छिन छिन मन मोद बढाऊं , नाचूं गाऊं हर्शाऊं

नख शिख पर बलि बलि जाऊं , मैं न्योछावर हो जाऊं