क्रोध तो मूर्खों को ही हुआ करता है , विचारवानों को भला कैसे हो सकता है ? क्रोध तो मनुष्य के अत्यंत कष्ट से संचित यश और तप का भी प्रबल नाशक है . इस लोक और परलोक दोनों को बिगाड़ने वाले इस क्रोध का महर्षि गण सर्वदा त्याग करते हैं. साधुओं का धन तो सदा क्षमा ही है।
Monday, May 14, 2012
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