Sunday, September 4, 2011

Aarti 2 - ॐ जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे .
    भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ..
 
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का .
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ..
 
    मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी .
    तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ..
 
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी .
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ..
 
    तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता .
    मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता ..
 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति .
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ..
 
    दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे .
    करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे ..
 
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा .
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ..



    तन मन धन सब है तेरा, स्वामी सबकुछ है तेरा
     तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा...

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