Friday, September 16, 2011

Ram Stuti 1 - श्री रामचंद्र कृपालु भजमन

श्री रामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणं 
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं 

कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरम 
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं 

भजु दीनबंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं 
रघुनंद आनंद कंद कोसल चन्द्र दशरथ नन्दनं 

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूशनम
आजानु भुजषर चाप धर संग्राम जित खर दूषणं 

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं 
मम ह्रदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनं 

मनु जाहि राचेउ मिलही सो वर सहज सुन्दर सांवरो
करुना निधान सुजान सीलु सनेहू जानत रावरो 

एही भाँती गौरी असीस सुनि सिय सहित हिय हर्षित अलि
तुलसी भवानी पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चलि


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